Friday, July 12, 2019

khaali si mulaakat

वो मुझसे मिलकर भी नहीं मिला
जैसे चाँद देखा चाँदनी के बिना
देखा मेरी आँखों में नहीं जुस्तजू का सागर
बस एकटकी और मुँह अपना फेर लिया

फिर घंटों गुज़ारी ख़ामोशी की गोद में
एक थमी सी हवा सांस की आवाज़ बिखेरती रही
मैंने तो फिर भी कुछ खाली यादों को बटोरा 
पर वो अगले ही पल इन पलों को भूल गया

मेरे मन के तूफान को ब्यान करने की बेचैनी
या फिर वो कुछ कहे, इस उम्मीद की राह मैंने देखी
असमंजस में डूबी वो दोपहर थी अनोखी
बारिश के इंतज़ार में जैसे हो बंजर धरती

फिर एकाएक कड़ियों का टूटना
बिना कहे, बिना सुने, उसके कदमों का बढ़ना
हुई समाप्ति की अनकही घोषणा
पर दिल को मेरे आज तक है लगता...
वो आया भी नहीं और यूँ ही बस चला गया

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