Monday, November 27, 2017

कहर के बादल ना बरस यहाँ
मेरा आसमान चाँद की राह देख रहा है
आज भी बैठी हूँ किनारे ही पे
लहरों के पीछे कहीं क्षितिज छुपा है


इंतज़ार के कदम बहुत दूर ले आये...
अब रेत ही छनती है उँगलियों से मेरी
शाद्वल की तलाश में सदियाँ हैं गुज़ारी
श्वास से खो ना जाए जीवन की नमी कहीं


ऐ राहगीर, तू अब रुख बदल ले
तेरी परछाई को टटोलना अब शौक नहीं  मेरा
मौसम को बदलने दूँ मैं अंततः
आखिर फिरदौस ही नहीं मक़सद बहारों का