Friday, June 9, 2017

चंद काग़ज़ों की मेरी किताब ..
कुछ पन्ने फड़फड़ाते हुए
मेरी कहानी लिखते हुए
कोरे है कुछ और कुछ में सिहाहीं फैली हुई


रोक दूँ गर उनके पलटने का ये शोर
नज़रें फेर दूँ गर देख ना पाऊँ इन्हें
कुछ साँसों का फ़ासला और फिर से
वही फड़फड़ाते हुए और मेरी कहानी दोहराते हुए
वही चंद काग़ज़ मेरी किताब को बनाते हुए