Monday, July 29, 2019

rutha paani

नन्ही मुठ्ठियों की कहानी
बेमतलब कुछ और कुछ अल्हड रवानी
पानी के टपटपाने का संगीत
और उसपे छोटे पगों से छपछप का गीत

नन्ही हथेलियों पर गिरती बूंदे
बंद करके क़ैद करले उनको
सरल सी चाहत जैसे है सरल सा पानी
पानी का खिलौना और खेल सा पानी

अपने दरवाज़े पे मैं खड़ा निहारूँ
मेघ मल्हार को दूर से ही सिहारूँ
बचपन किंतु सोचता नहीं, निडर शैतानी 
बस एक कदम और दोस्त बना पानी

जैसे हवा जैसे धरती जैसे श्वास असीम
सोचा था होगा, वैसे ही हमेशा पानी
बारिश होगी जीवन भर की मेहमान
जैसे सूरज चमकेगा वैसे ही बरसेगा पानी

अब देखता हूँ मासूम आँखों को
राह जोते अद्भुत सखा की
पर आसमान की गगरी है अब खाली
हवा बनी रूखी और रूठा इनसे पानी

कैसे हमने छल किया, छीना इनसे
हरा भरा बचपन और गीली मिटटी की खुशबु
रंग बदल दिया धरती का,
मैला उदासीन सलेटी
ना ही अब खुशनुमा है नीला आसमान
ना ही है हरियाली और ना कहीं खेलता पानी




Sunday, July 28, 2019

The motionless hours

The golden fields sway to the music
the winds are playing since morning today
Birds tiptoeing around chirpily
Sometimes mouth full of hay

The lazy sunshine as if craving for siesta
I, under the tree, sated after a heavy meal
Killing the afternoon with bouts of sleep
While the breeze gently caresses my feet

The sun may set in some time
The evening would commence its game
As I stare at the horizon unperturbed
If my gaze could freeze the frame

A bivouac of ants pass by me
They look agile to my languorous spine
The sweet smell of grass pleasures me
And the motionless hours just feel divine

The daisies

The daisies fly away with the wind
As I run to follow them fast
Petals one or two scatter
Like pearls in a sea of wet grass

Lavender, white and yellow may be
New shades splashed by the sun in glee
A morning look and an evening style
Not shy to flaunt it's beauty all the while

Like happiness..
who knows where the daisy goes
continuously keeping me on my toes
I chase those that had left my yard
How much I wish them to be back!
For I had tried to hold them so hard...

Wonder why don't I bask
in the beauty of those remaining
Those that are still swaying
even as the wind is at its task

Keeping me company, staying close
Like those tiny moments of happiness
I take so much for granted those
They make my heart happy and fond
Just like these daisies that didn't fly beyond

Saturday, July 27, 2019

बारिश की रुमझुम सी लय
लाती है याद तुम्हारी क्यों प्रिय
क्यों बादल की गरजन में लगे
थामूं हाथ तुम्हारा, तुम्हारा ही निस्संदेह

गीली मिटटी की सौंधी सी महक
और हवा से खेलती हुई सर्द सी दोपहर
क्यों मीठी सी शर्माती धूप
मेरे आँगन में ढूंढे तुम्हारा ही रूप

मौसम को कैसे ये पता
मेरे मन में तुम्हारा प्रेम है कहाँ छिपा
तार कुछ पुराने क्यों ये छेड़ता
मेरे सर का ये आसमान बांवरा

क्यूं है इसे तलब तुम्हारी
मुझसे भी कहीं ज़्यादा
जैसे प्रेम का कोई क़िस्सा तुम्हारे साथ
बुना हो इसने भी पौना आधा

साज़िश है ये इन सबकी कि
आखिर बुला लूँ तुम्हें आंगन में अपने
बातें हमारे स्नेह की मुकम्मिल हो या नहीं
इस आसमान को तुम्हारा दीदार तो मिले






Thursday, July 25, 2019

prem ka sangeet

कितने भीगे से लम्हे
संग तुम्हारे गुज़रे
जब बादलों ने बजायी ताल
और बारिश ने गाया मल्हार

बड़े से पोखर हमारी तस्वीर लिए
झांका जब तो देखा जहां भर को इनमें
सर्द सी झड़ी हमारे आगमन से मचली कुछ
और फिर हवा ने छेड़ा टहनियों का झुरमुठ

एक संगीत है मेरे आँगन में आरम्भ
 जब से आगमन हुए तुम्हारे कदम
मोहक है लय इस प्रेम की अद्भुत
सुरीली है ज़िन्दगी जब तुम हो सम्मुख

Saturday, July 20, 2019

zindagi ka roop

दिल को फिर रख दिया ज़मीन पर
फिर से रौंदा किसी ने
अनजाने में या फिर जान बूझकर

कारवां है कि रुकता ही नहीं
ख़ुशी की गर्जन तो है मेरे आसमान में 
पर बरसती है ग़म की ही लम्बी झड़ी

इतने ढकोसलो से है रूह कांपती 
भ्रम है यह मेरे नासमझ मन का
या दुनिया है इन्ही से भरी पढ़ी

सालों से बुन रहा हूँ तुझे ज़िन्दगी
फिर भी टेढ़ी मेढ़ी है तेरी सिलें
मेरे हाथों में है कुछ कमी
या फिर ज़िन्दगी का है रूप यही


Wednesday, July 17, 2019

Rahgir

एक स्पर्श
मुलायम मखमली
तहें बेशुमार
आनंद असीम

थके कदम
राहगीर को मोहे
महक सौंधी
जैसे चंपा चमेली

बैठा सकुचाता वो
उँगलियों से खेलता
नन्हे कण अनगिनत
जैसे ब्रह्माण्ड का प्रतिबिम्ब

गीली सी खुशबु
मिट्टी जो है काली
मेघों के तोहफे
बने मीलों की हरियाली

स्वर्ग का एहसास उसे
वृक्षों के झुरमुट तले
बारिश के आगमन में
शिखिर को लगातार ताके

यात्रा जैसे सफल
राहगीर तृप्त
अब बंद हैं आँखें
आनंद को क़ैद किये
मुख पे मुस्कान लिए


Friday, July 12, 2019

khaali si mulaakat

वो मुझसे मिलकर भी नहीं मिला
जैसे चाँद देखा चाँदनी के बिना
देखा मेरी आँखों में नहीं जुस्तजू का सागर
बस एकटकी और मुँह अपना फेर लिया

फिर घंटों गुज़ारी ख़ामोशी की गोद में
एक थमी सी हवा सांस की आवाज़ बिखेरती रही
मैंने तो फिर भी कुछ खाली यादों को बटोरा 
पर वो अगले ही पल इन पलों को भूल गया

मेरे मन के तूफान को ब्यान करने की बेचैनी
या फिर वो कुछ कहे, इस उम्मीद की राह मैंने देखी
असमंजस में डूबी वो दोपहर थी अनोखी
बारिश के इंतज़ार में जैसे हो बंजर धरती

फिर एकाएक कड़ियों का टूटना
बिना कहे, बिना सुने, उसके कदमों का बढ़ना
हुई समाप्ति की अनकही घोषणा
पर दिल को मेरे आज तक है लगता...
वो आया भी नहीं और यूँ ही बस चला गया