Friday, August 4, 2017

sannata

सन्नाटा ख़ामोशी से मुझे लपेटे हुए
सुनता  हूँ मैं अपने ही ख़यालों का शोर


हवा केँ झोंके ने भी मेरे दर का रूख ना किया
डर गया शायद राह के पत्थरों से


ऐसे ही उम्र दराज़ निकाली बिना गिला किये
अब कहता हूँ कुछ भी तो शिकायत-ए- अंदाज़ लगे


क्या दुनिया क्या इसके रोज़ के फ़लसफ़े
सन्नाटा फ़िर भी है ..
फ़िर भी बस मेरे ही ख़याल मुझसे बात कहें 

Wednesday, August 2, 2017

बेबाक़ है ज़िन्दगी ..
हर वक़्त नग़मा सुनाती है हक़ीक़त  का.
दफ़्न कर दो इसे , माज़ी बना दो मेरा
जी जाना चाहता हूँ मैं तेरे दायरों के परे ...


मेरे मुस्तक़बिल पर यूँ लकीरें ना खींच
रहने दे इसे बिना सियाही के
धुंधले से रास्ते हैं मेरे ख्वाबों के तो क्या
टकरा के गिरूंगा नहीं दफतन तेरी दीवारों से