Saturday, September 30, 2017

Dreams I remember
Long forgotten are realities
I chose those soft corners
Embracing me with warmth
Shielding me from the storms

Funny it is but perplexes the heart
Happy to relive the blurs
Shying away from the stark
A part of which has lived by me

There is a parallel world
I choose to sometimes find respite in
A calmer presence,
Prayers not spoken but answered
Wins celebrated
No defeats known
I commanding the result

A world of hope,
In abundance the optimism galore
A world of dreams
There is a parallel world
 I sometimes weave...
To let me make the reality as it ought to be




Friday, September 29, 2017

Cherrapunji

दूर तक निगाहें जाने को तरसती
उनको रोके है यह कोहरे की चादर

सूरज भी सिमटा है भरी दोपहरी में
बादलों का कहर फैला है उसके हौसले पे

धुंध की रुई इतनी गहरी
जैसे मोटी रज़ाई चारों ओर जकड़े है मझे

मैं भी बारिश की अनगिनत बूंदों में पलों को गिनते हुए
बैठी हूँ खिड़की के इस तरफ कि जाने कब
धूप मुस्कुराते हुए बुलाये अपने आलिंगन में
और मैं फुदकते हुए खुले आसमान को नज़र भर देखूँ
बस एक ही घड़ी, पर दूर तक मेरी भी निगाह पहुँचे 

Saturday, September 9, 2017

Subah ki pehli chai

सूरज की अंगड़ाई
सहर के पहले पहर से भी पहले,
वो दस्तक देने से पहले ,
मेरे दर पे ठहरना उसका
मेरा दरवाज़ा खुलने से पहले
मेरे आंगन में सुस्ताना



फर्श की ठंडक और
उसपे मेरे कदमों की
उस दिन की पहली आहट
शोर के पहले की वो
सुरीली सी सरसराहट



चाय की प्याली और उनमें घुले
वो मेरे अपने पलों की चुस्की
रोज़ की ज़िंदगी जीने से
पहले की वो ज़िन्दगी



आज फिर से निंदाई आंखों से मुझे जगा रही है
अपनो की सुबह से पहले
मेरी अपनी सुबह
मेरे आंगन में मुझे बुला रही है