Monday, December 31, 2018

Benaras

गूंजती पुकार
मंत्रों में लीन
डूबे अहंकार
लहरों में मलीन

तेज़ शंख
चीरती हुंकार
धुंध और धुआं
देखें चक्षु सर्वत्र
भीड़ से घिरे
मन का खाली संसार

माथे पे तिलक
नमन करे हस्त
झुके आशीष
अलौकिक का सम्मान
निष्फल प्राथना
सर्वस्व स्वीकार

अंतर्मन के द्वंद अनंत
रोज़ का रोष
अंदर व बाहर
ढूंढे क्या इस पार उस पार
क्या जीवन का सार
लंबी यात्रा कर
पहुँच जाएं इक दिवस
कभी देने और कभी लेने
अपना अंतिम पुरुस्कार
वक़्त से पूछा मैंने इक बार
क्यों पहर हर पहर बदलते हो रंग
रखते हो तारीखों का हिसाब
कभी रात और कभी दिन का लिबास
तुम्हारे साथ हमेशा छोटी ही रहती है
क्यों मेरी मुलाक़ात

उसने कहा बिना रुके बिना थामे
बदलते रहते हैं चाहे रूप मेरे
तुम कभी सोचो कि साथ हूँ तुम्हारे
कभी बुरा कहकर नकार दो भले ही मुझे

जानता हूँ हक़ीक़त यही मैं
मेरा वजूद नही कोई बिना तुम्हारे
चाहे नाम दे दो मुझे बीता हुआ या
फिर पुकार लो कहके साल वो आने वाला

Monday, December 24, 2018

सपने

मीठी सी मुस्कान उसके मुख की कहे
रहने दो बंद आँखे
बंद आंखों के दरिया में ...
अनगिनत सपने बहें

कल एक हरा बगीचा देखा था ख्वाब में
हकीकत में तो शायद कुछ सूखे घास ही हों
झूँलो पे खूब पींगें भी लगाई उस बाग में
आँखे खोले तो बस पींगो का हल्का एहसास ही हो

गम से लैस मायूसी के लिए सपनों के द्वार हैं बंद
क़हक़हे और शरारतें यहां आज़ाद पंछी
बहुत बड़ा इनका आसमान अनंत
और उसमें सुशोभित इंद्रधनुष जीवंत

धरती पे कोई नही रहता सपनों में
सपनों को यह धरा पूरी ना पड़े
इनमें बीते पल भी आज में हैं लीन
जब पुकारो तब ये हाज़िर
वक़्त सबकी मुट्ठी में इठलाये
न गुज़रने की तलब ना बीतने पे ग़मगीन

पर जब नींद से वो जागे
कुछ ख्वाब हैं रह जाते
अल्हड़ जिद की तरह
अदृश्य पंखों की कल्पना किये
अनंत आसमान में फिर वो उड़े
सपनों को वास्तविकता का उपहार दिए





Saturday, December 22, 2018

बीतने को तैयार फिर एक साल

कैसे दबे पांव गायब होने की ताक  में हो तुम
भूल गए वो साल भर का इकठे उठना बैठना
जैसे लंबी गहरी दोस्ती का था वादा

जब एकांत में रोई थी उस रात मैं
नए सूरज का तोहफा तुमने दिया थमा
घड़ियां बदली और नई राहें टकराई
जैसे गुज़रा पल कभी ही ना हो घटा

घर के सारे कोने कम पढ़ गए
जब गुफ़्तगू के तुमसे कारवाँ चले
कितनी प्याली चाय की खनकी
हमारी अनकही बातों की चुस्की लिए

और फिर मेरा जन्मदिन तालियों से भरा
धड़कने थी तेज़ और तुमने हाथ था थामा
मैंने पूछा था कई बार
गुज़र रहे हो यहां से
कि ठहरोगे भूल के अगली डगर
तुमने कहा मुझे लेना यादों में जकड़
और ठहर गए मेरे दिल में तुम बिना रुके

अब दबे पांव तुम जाने की हो ओट में
नए साथ की दिलचस्प बातें बोले
हौले से अलविदा की तैयारी में
थाम लूँ क्या तुम्हें फिसले हाथो से
या फिर नए सूरज को दरवाज़ा दूँ मैं खोलने

नया साल जब कदम रखेगा मेरे जीवन में
और नज़र ही नहीं हटेगी मेरी उसके मुख से
तुम दबे पांव फिर चले जाओगे न
नए वक़्त की मुझे नई सौगात दिए

Tasveere

अलमारी में तोहफ़े रखे है
खुलते ही खास दिनों की महक
मेरे जहां में ये बिखेरें
कितने रंगों से भरे
मेरे दिल में कई घर किये

एक एक करके हटाने दो
धूल की परतें हैं कई
धुंधली यादों की झलक मुझे लेने दो
उसके नीचे ग़हरी खुशी का एहसास
दबा सा, छुपा है बस यहीं

बरसों से सूखा पड़ा है फुरसत का
 क्षितिज पे ध्यान लगाए मैं,
आँखें थोड़ी थक सी गयी हैं
ठहरने दो इन्हें अलमारी के साये तले
सामने जो ढेर रखा है उपेक्षित सा
टटोलने दो ...
जैसे नरम सी छांव इक मरुस्थल में

एक एक को निहारती मेरी यह नज़र,
जैसे हटी ही नही हो माज़ी से कभी
नादान से चहरे जैसे किसी दूसरे के हों इनमें
जैसे किसी और की ज़िन्दगी के पलों का
बयान करती हैं ये ...
मुझ ही से अभी

तभी घड़ी की घंटी का आह्वान ।
मेरे जेहन को जगाने की कोशिश
तस्वीरों को वापिस अल्मारी में, क़ैद करने की चेतावनी
सपनों की दुनिया को फिर कहूँ
मैं अलविदा.....
किवाड़ पे कुंडी लगाते हुए
इस उम्मीद में कि
फिर से अलमारी खोलूंगी...
फिर कभी .... फिर से कभी....

Friday, December 21, 2018

नाम दे दो धरती को पानी

नाम दे दो धरती को पानी
भूरी होती ज़मीन मेरी
और सलेटी होता ये पानी
मैले दोनों हैं अब एकरंग एक परिभाषा
एक जैसे मिले हुए
बेहतर होनी की कम है आशा

आख़िर गुलाब की महक न भी हो
पर नाम का रूतबा सदा रहेगा
सबका घर होगा फिर पानी
धरा को मनुष्य पानी जब कहेगा

और पानी ही नही दिखेगा जब पानी में
मानुष शायद जागे गहरी निद्रा से
सूखे ताल और सूखी नहरें
सूखी धरती और सूखता पानी

बदल जाये तब भविष्य शायद
मानसिकता और रवानी
धरती के जैसे तो और भी कई ब्रह्माण्ड में
धरती को अलग करे सबसे पानी

Saturday, December 1, 2018

Tiny bits of life that make it seem whole...
Like specks of sparks lighting my soul
Still is not the time, not even for a breath
As the clock turns frantic catching the next dawn
While In the depths of my heart...
I relive those tiny bits of life...Those tiny bits that make it seem whole

There are those who are constant within us even as we transform
Appearances no longer the same
Reminding us who we no longer are
I move ahead but taking along
a part of what should have been left
Reflections changing everywhere my sight goes
While I feel I am still the very same...
with those who are constant within us even as we transform


Frozen moments preserved somewhere in our minds...
A ball of fire the time is..
rolling - burning wishes sometimes, sometimes scorching our dreams...
Frozen moments, but as ages go by, remain unscathed..
Frozen moments still there somewhere in our minds

Thoughts that touch you across dimensions...
Depths unfathomable, the oceans shy away
Words are noise...unnecessary, inexpressible,
Silences galore, as our minds talk
Walking hand in hand though miles apart...

Beyond life and reality...the visible, the felt
There exist truths...invincible..
Unflinching...unsaid
That are frozen in our minds...
The constants within us
Making our life seem whole....