Saturday, July 20, 2019

zindagi ka roop

दिल को फिर रख दिया ज़मीन पर
फिर से रौंदा किसी ने
अनजाने में या फिर जान बूझकर

कारवां है कि रुकता ही नहीं
ख़ुशी की गर्जन तो है मेरे आसमान में 
पर बरसती है ग़म की ही लम्बी झड़ी

इतने ढकोसलो से है रूह कांपती 
भ्रम है यह मेरे नासमझ मन का
या दुनिया है इन्ही से भरी पढ़ी

सालों से बुन रहा हूँ तुझे ज़िन्दगी
फिर भी टेढ़ी मेढ़ी है तेरी सिलें
मेरे हाथों में है कुछ कमी
या फिर ज़िन्दगी का है रूप यही


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