Saturday, December 22, 2018

Tasveere

अलमारी में तोहफ़े रखे है
खुलते ही खास दिनों की महक
मेरे जहां में ये बिखेरें
कितने रंगों से भरे
मेरे दिल में कई घर किये

एक एक करके हटाने दो
धूल की परतें हैं कई
धुंधली यादों की झलक मुझे लेने दो
उसके नीचे ग़हरी खुशी का एहसास
दबा सा, छुपा है बस यहीं

बरसों से सूखा पड़ा है फुरसत का
 क्षितिज पे ध्यान लगाए मैं,
आँखें थोड़ी थक सी गयी हैं
ठहरने दो इन्हें अलमारी के साये तले
सामने जो ढेर रखा है उपेक्षित सा
टटोलने दो ...
जैसे नरम सी छांव इक मरुस्थल में

एक एक को निहारती मेरी यह नज़र,
जैसे हटी ही नही हो माज़ी से कभी
नादान से चहरे जैसे किसी दूसरे के हों इनमें
जैसे किसी और की ज़िन्दगी के पलों का
बयान करती हैं ये ...
मुझ ही से अभी

तभी घड़ी की घंटी का आह्वान ।
मेरे जेहन को जगाने की कोशिश
तस्वीरों को वापिस अल्मारी में, क़ैद करने की चेतावनी
सपनों की दुनिया को फिर कहूँ
मैं अलविदा.....
किवाड़ पे कुंडी लगाते हुए
इस उम्मीद में कि
फिर से अलमारी खोलूंगी...
फिर कभी .... फिर से कभी....

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