Friday, December 21, 2018

नाम दे दो धरती को पानी

नाम दे दो धरती को पानी
भूरी होती ज़मीन मेरी
और सलेटी होता ये पानी
मैले दोनों हैं अब एकरंग एक परिभाषा
एक जैसे मिले हुए
बेहतर होनी की कम है आशा

आख़िर गुलाब की महक न भी हो
पर नाम का रूतबा सदा रहेगा
सबका घर होगा फिर पानी
धरा को मनुष्य पानी जब कहेगा

और पानी ही नही दिखेगा जब पानी में
मानुष शायद जागे गहरी निद्रा से
सूखे ताल और सूखी नहरें
सूखी धरती और सूखता पानी

बदल जाये तब भविष्य शायद
मानसिकता और रवानी
धरती के जैसे तो और भी कई ब्रह्माण्ड में
धरती को अलग करे सबसे पानी

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