Saturday, December 22, 2018

बीतने को तैयार फिर एक साल

कैसे दबे पांव गायब होने की ताक  में हो तुम
भूल गए वो साल भर का इकठे उठना बैठना
जैसे लंबी गहरी दोस्ती का था वादा

जब एकांत में रोई थी उस रात मैं
नए सूरज का तोहफा तुमने दिया थमा
घड़ियां बदली और नई राहें टकराई
जैसे गुज़रा पल कभी ही ना हो घटा

घर के सारे कोने कम पढ़ गए
जब गुफ़्तगू के तुमसे कारवाँ चले
कितनी प्याली चाय की खनकी
हमारी अनकही बातों की चुस्की लिए

और फिर मेरा जन्मदिन तालियों से भरा
धड़कने थी तेज़ और तुमने हाथ था थामा
मैंने पूछा था कई बार
गुज़र रहे हो यहां से
कि ठहरोगे भूल के अगली डगर
तुमने कहा मुझे लेना यादों में जकड़
और ठहर गए मेरे दिल में तुम बिना रुके

अब दबे पांव तुम जाने की हो ओट में
नए साथ की दिलचस्प बातें बोले
हौले से अलविदा की तैयारी में
थाम लूँ क्या तुम्हें फिसले हाथो से
या फिर नए सूरज को दरवाज़ा दूँ मैं खोलने

नया साल जब कदम रखेगा मेरे जीवन में
और नज़र ही नहीं हटेगी मेरी उसके मुख से
तुम दबे पांव फिर चले जाओगे न
नए वक़्त की मुझे नई सौगात दिए