Tuesday, February 14, 2017

Kakoon....

आज शुरुआत कितनी उम्दा हुई है  ..
किसी ग़ज़ल के तरन्नुम की तरह,
कुछ बिन बुलाये शब्द सुबह के झोंके में...
बिखरे हों कमरे  के कोनो में सिमटी हुई रौशनी की तरह


माँ, आज कुकून  बना दो रज़ाई  में मुझे...
एक अध् खुली पलक  ने कहा.
 मेरा मन भी ललचा उठा -
कुछ लम्हे ऐसे ही खरचने को....
क्या मैं गुजरने दूँ उन्हें बस एकटकी आँखों से फोटो खींचे?
और अलसायी सी एक नायाब अंगड़ाई लिए?


ओह.. आज फिर स्कूल की घंटी पुकार रही है तुम्हे,
कुकून की बारी तो कल की रक्खी थी न तुमने...?
आज तो भाग दौड़ और बस्ते  का दिन है,
हड़बड़ाते हुए हाथों से  टिफ़िन,बोतल और बैग उठाते हुए.


मां, बस पांच मिनट और,
मुझे उस परी के सपनों में खोने दो,
देखो, उसने अपना राजकुमार ढूंढ लिया है,
बस उसे महलों की रानी बनने दो.


ओह...  तुम और तुम्हारे वह अछूते से ख्वाब,
मासूम से तुम्हारे चहरे से वो  ख्वाब,
मैं भी देखूँ क्या आज तुम्हारे साथ...
महलों में उड़ती हुई तितलियों से वो  ख्वाब,


सुबह को  क्या आज  दिन से मैं चुरा लूँ
बंद कर लूँ कुछ  ख़्वाबों को मैं भी अपनी  आँखों में
छोड़ो, दिन तो बहुत आएंगे रोज़ ही...
आज एक लंबी सी सुबह को यादों के पन्नो में छुपा दूँ


आओ तुमको रजाई में फिर से कुकुन बना दू....

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