Saturday, September 9, 2017

Subah ki pehli chai

सूरज की अंगड़ाई
सहर के पहले पहर से भी पहले,
वो दस्तक देने से पहले ,
मेरे दर पे ठहरना उसका
मेरा दरवाज़ा खुलने से पहले
मेरे आंगन में सुस्ताना



फर्श की ठंडक और
उसपे मेरे कदमों की
उस दिन की पहली आहट
शोर के पहले की वो
सुरीली सी सरसराहट



चाय की प्याली और उनमें घुले
वो मेरे अपने पलों की चुस्की
रोज़ की ज़िंदगी जीने से
पहले की वो ज़िन्दगी



आज फिर से निंदाई आंखों से मुझे जगा रही है
अपनो की सुबह से पहले
मेरी अपनी सुबह
मेरे आंगन में मुझे बुला रही है






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