Monday, April 13, 2020

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काफ़िर हूँ
रंज छुपाता हूँ
तेरे दर पे आके
मैं बस मुस्कुराता हूँ

कतरा हूँ
तेरी ही ज़िन्दगी का
दायरों को मानता नहीं
दिल में रहूँगा सदा
मैं कोई अंत जानता नहीं

ज़िद हूँ
कभी तुम्हारे अलफ़ाज़ बनके
कभी तुम्हारी रूह की तहों में
यूँ लुक छिप करके
तुमसे ही मैं बचूँगा

चाहत हूँ
जो पूरी कर लो तो अधूरा रहूँ
और छोड़ना चाहो जो साथ
एक आस बनके तुमको तड़पाऊँ

मैं तुम हूँ कभी
कभी एक अनजान
ढूँढोगी तो भी ना मिलूँगा
बरसों की है तुमसे पहचान
रोज़ उलझन सी ज़िन्दगी को
जब तुम सुलझाओ
मैं वो हूँ
जो देता जाऊं तुम्हें मुस्कान























1 comment:

Monica Patricia said...
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