Saturday, February 1, 2020

aisa kyun


ऐसा क्यों लगता है कि तुम होके भी नहीं हो
कि तुम्हारी हँसी तो गूंजती है कानों में मेरे
पर तुम्हारे दिल की मुस्कराहट
मुझसे दूर कहीं क्षितिज पे ठहरी हो






ऐसा क्यों लगता है कि हाथ थामे चल तो दिए 
पर एहसास नहीं होता मुझे होने का तेरे 
मेरे मन के कोने में एकांत सा है वातावरण 
और भीड़ में भी संग तुम्हारे हम अकेले 
ऐसा क्यों लगता है कि तुमसे कहके भी कुछ ना कहा 
लफ़ज़ कई तुम्हारे पर दर्ज़ हुए ना ज़ेहन में मेरे
जैसे घंटों किस्से बोले तुमने मुझसे
पर मेरे कानों में ख़ामोशी के आलम ही रहे


ऐसा क्यों लगता है कि तुम्हे आज भी ढूंढती हूँ
कि तुम्हारी ही आँखों में कहीं पा जाऊं तुम्हें
ऐसा क्यों लगता है जब भी साथ होती हूँ तुम्हारे
कि तुमसे ही माँगना चाहती हूँ मैं तुम्हे

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