Friday, September 20, 2019

kuch beete hue din

कुछ दिन बीत जाते हैं यू ही
पूरी ज़िंदगी को समेटे हुए
और फिर बाकी के पल
उन बीते हुओं की यादें पिरोये

कुछ दिन बीत जाते हैं यू ही
जैसे फूल झड़े हरे भरे वृक्षों से
और एक बेरंग सा आँगन रह जाए
बहार की अपेक्षाएं लिए

कुछ दिनों की यादें
कोनों में छिपती ही नहीं कभी
आज के श्वासों में हर दम
सुनती है उनकी ही हँसी

कुछ बंद दरवाज़े माज़ी के
रूह के अंशों को क़ैद कर लेते हैं
अंदर बाहर की दास्तानों में
ज़िन्दगी के किस्सों को सिमटा जाते हैं

कितने ही कदम बढ़ जाएँ
कुछ क़दमों की आहट
ले जाती है साथ हमें
और फिर से जी लेते हैं हम पल
जो बार बार कई बार जिए हमने
कुछ दिन बीत जाते हैं यू ही
पर बीतते नहीं उन दिनों के लम्हें 









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