Tuesday, September 17, 2019

meri pyaari maa

तुम रहोगी क्या संग हमेशा
मेरे हर एक पहर की कहानी कहने
कभी शाबाशी बिखेरते हुए
और कभी चुनौती ललकारने 
पुछा था तुमने मुझसे इक दिन ये
नन्ही सी मुस्कान कोमल से चेहरे पे लिए

मैंने भी बदमाशी में हंसी दबाये
कहा...हाँ  बिलकुल साये की तरह
कभी डराने तुम्हें
और कभी तुम्हारा साथ निभाए

और ज़मीन से परे जब
आकाश बुला लेगा तुम्हें
मोटी आखों से टटोलते हुए पुछा था तुमने
चंद वरणो से बना यह सवाल
और हुई थी मैं निरुत्तर निढाल

तब  हाथ थामा  था तुमने मेरा
मैं भी झट से पहुंच जाउंगी तुम्हारे पास
पर राह न गया मुझसे
कह डाला बिना सोचे मैंने
गर तब तक धरती पे बना लिया
होगा मैंने अपना आवास ?

पीछे ही रहूंगी सदा तुम्हारे मैं
मेरी प्यारी माँ
धरती आकाश स्वर्ग
या किसी भी जहाँ में
तुम्हे ओझल ना होने दूँगी
जैसे प्रकाश नहीं जाता दूर सूर्य से
और चाँद रहता है करीब धरा के

चिपकी रहूंगी तुमसे सदा
जैसे चिपकाया था तुमने मेरा
गोंद से इक टूटा खिलौना
सबसे प्यारा है वो मुझे आज भी
जैसे तुम हो सबसे ज़्यादा प्यारी
मेरी प्यारी सी माँ




No comments: