Friday, November 23, 2018

असमंजस

एक दरवाज़ा खुला है
बरसों से बिना कोई आहट किये
उम्र भर की दास्तान कहने
या फिर इम्तिहां हर बार वो लिए

कभी इस ओर तो कभी चौखट के पार
मेरे कदम बस उस द्वार के ही आस पास
घड़ी हर घड़ी .....लगातार

ज़िन्दगी जैसे सिमट सी,
उलझ सी गयी हो इस असमंजस में
या फिर उस खुले किवाड़ के होने के उल्लास में

जैसे रात के बाद सुबह का इंतज़ार
और फिर ढलते सूरज की राह ताकती मैं बार बार

जैसे मुकाम हो सामने
और सारा जीवन टटोलते हुए जाए गुज़र
मंज़िल इस तरफ है कि
कदमों को पार करना होगा ये दर

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