Friday, November 23, 2018


दोस्त कुछ ही राहों पे तो साथ मेरे चल
थोड़ी गुफ़्तगू करें और थोड़े रंज सहें मिलकर
थोड़े उल्टे सीधे कारनामे और कुछ संजीदगी के पल
मेरी ज़िंदगी की किताब में जुड़ जाएं बेदखल

फिर जब तन्हाई की आगोश में खामोश बैठूंगी
यूँ ही एकटक राहों को निहारे सुनसान दर
याद करेगा मेरा दिल उन दोस्ती की कहानी कहे पन्नो को
और गर्माहट होगी मेरी काँपती रूह में बसर

तुम्हारी आवाज़ गूंजेगी कानों में
जैसे कल ही की बात हो
एक एक लफ्ज़ ताज़ा लगेगा इन पन्नो का
जैसे ज़िन्दगी भर की सौगात हो

No comments: