Thursday, August 1, 2019

tumhari yaadein

क्यों रूठती नहीं तेरी याद
तुम्हारे मुझसे रूठने पर
क्यों किवाड़ पे खड़ी दस्तक लगाती है
जैसे ठकठकाया हो तुमने मेरा दर

मेरे आसपास ही रहती है वो
मानो तुम दूर गए ही नहीं
करती है मेरी रूह से वो गुफ्तगू
मानो तुम ही कह रहे हो बाती

तुम्हारी यादों का साया
मेरे साथ चलता है हर पल
तुम ने तो रुख कर लिया दूसरा
बन गयीं है ये मेरी हमसफ़र

मुस्काती हूँ तुमको जब भी सोचके
जब भी लेते हैं तुम्हारा नाम मेरे अधर
यादें एहसास दे जाती हैं तुम्हारा
जैसे मुस्कान तुम्हारी मेरे सामने हो हर सहर

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