Wednesday, August 2, 2017

बेबाक़ है ज़िन्दगी ..
हर वक़्त नग़मा सुनाती है हक़ीक़त  का.
दफ़्न कर दो इसे , माज़ी बना दो मेरा
जी जाना चाहता हूँ मैं तेरे दायरों के परे ...


मेरे मुस्तक़बिल पर यूँ लकीरें ना खींच
रहने दे इसे बिना सियाही के
धुंधले से रास्ते हैं मेरे ख्वाबों के तो क्या
टकरा के गिरूंगा नहीं दफतन तेरी दीवारों से











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