Friday, December 9, 2016

रुखसत किया जिस तूफ़ान को यह वादा लेकर..
कि दस्तक न देना कभी
मेरा किवाड़ है कमज़ोर कुण्डी भी है टूटी
बहुत बिखरे पढ़े है लम्हे मेरे कमरे में
अरसा लगेगा अलमारियों में समेटके रखने में इन्हें

आज सन्नाटा है शब्दो का
कलम पर भी जैसे ज़ंग सा लगा है
ख्यालों की तबीयत तरन्नुम की नहीं है
बस खामोशियों से पन्ना भरा हुआ है

आज फिर उसी तूफ़ान की चाह हूँ रखता
उन्ही लम्हो से बातें करने को हूँ तरसता।
ऐ बिछड़े सैलाब फिर रुखसार हो
मैंने अपनी किताब का दरवाज़ा है खोला