Thursday, June 6, 2019

nayi sahar

इस ज़िन्दगी से परे भी देख नादान
अस्तित्व को समेट कुछ आकांक्षाओंके तले
तूने  जिसे मान लिया जीवन भर का सामान 
किसी और के अभिव्यक्त किसी और के कहे

अब ओझल हो जाने दे वो सुबह
जो लाती है बंदिशों भरा दिन
अगली सहर से पहले नया अंतरिक्ष चुन ले
सीमा हो जहाँ तक किरणे सूरज की उछले

सदियों से वाणी बोली औरों की निरंतर
या फिर साधी चुप्पी निस्वार्थ समर्पण
मुख को कह दे निसंकोच कर दे अब ब्यान
क्या संस्कृति और क्या सीख की खान






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