खिड़की मेरे बचपन की
खुलती है तुम्हारी तरफ मेरे दोस्त
शरारतों की खनक होती थी
तुम्हारे आने से जब हर रोज़
स्कूल के बेख़याल दिन
जब क्लास में बैग फेंक
भाग जाते थे हम खुले मैदान
कोई रोक नहीं थामती हमें
बस थे धागे दोस्ती के दरमियान
टीचर की डाँट पे भी हंसी की फुआर
आखरी बेंच पे किलकारियों की कतार
एक दूसरे की नोटबुक पे लिखना
चुटकुले और अनकहे राज़ कई हज़ार
वो लंच टाइम की घंटी
जैसे जेल से छूटे कैदी
और पड़ोसी के टिफ़िन की महक
हमेशा लगती अपनी से कहीं अच्छी
कॉरिडोर में हमारे जूतों की गर्जन
कभी खुसपुसाहट जब मैडम पढ़ाती थी लेसन
केमिस्ट्री टीचर का हर बात पे चॉक फेंकना
कहना- रहोगे तुम लोग हमेशा ही डफर
कैसे साल बीते बने दशक
जीवन में घुली कितनी ही नई महक
गालियाँ कुछ छूटी कुछ रास्ते ही बदल गए
अपनी मंज़िल की तरफ हम बिना रुके जो बड़े
पर आज भी खिड़की खोलती हूँ जब
घड़ी हर घड़ी बचपन की
वहीं रुके हुए तेरे क़दमों से मिलते हैं मेरे कदम
मानों सालों की अटूट संगत हो मेरे मन की
खुलती है तुम्हारी तरफ मेरे दोस्त
शरारतों की खनक होती थी
तुम्हारे आने से जब हर रोज़
स्कूल के बेख़याल दिन
जब क्लास में बैग फेंक
भाग जाते थे हम खुले मैदान
कोई रोक नहीं थामती हमें
बस थे धागे दोस्ती के दरमियान
टीचर की डाँट पे भी हंसी की फुआर
आखरी बेंच पे किलकारियों की कतार
एक दूसरे की नोटबुक पे लिखना
चुटकुले और अनकहे राज़ कई हज़ार
वो लंच टाइम की घंटी
जैसे जेल से छूटे कैदी
और पड़ोसी के टिफ़िन की महक
हमेशा लगती अपनी से कहीं अच्छी
कॉरिडोर में हमारे जूतों की गर्जन
कभी खुसपुसाहट जब मैडम पढ़ाती थी लेसन
केमिस्ट्री टीचर का हर बात पे चॉक फेंकना
कहना- रहोगे तुम लोग हमेशा ही डफर
कैसे साल बीते बने दशक
जीवन में घुली कितनी ही नई महक
गालियाँ कुछ छूटी कुछ रास्ते ही बदल गए
अपनी मंज़िल की तरफ हम बिना रुके जो बड़े
पर आज भी खिड़की खोलती हूँ जब
घड़ी हर घड़ी बचपन की
वहीं रुके हुए तेरे क़दमों से मिलते हैं मेरे कदम
मानों सालों की अटूट संगत हो मेरे मन की
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