अलमारी में तोहफ़े रखे है
खुलते ही खास दिनों की महक
मेरे जहां में ये बिखेरें
कितने रंगों से भरे
मेरे दिल में कई घर किये
एक एक करके हटाने दो
धूल की परतें हैं कई
धुंधली यादों की झलक मुझे लेने दो
उसके नीचे ग़हरी खुशी का एहसास
दबा सा, छुपा है बस यहीं
बरसों से सूखा पड़ा है फुरसत का
क्षितिज पे ध्यान लगाए मैं,
आँखें थोड़ी थक सी गयी हैं
ठहरने दो इन्हें अलमारी के साये तले
सामने जो ढेर रखा है उपेक्षित सा
टटोलने दो ...
जैसे नरम सी छांव इक मरुस्थल में
एक एक को निहारती मेरी यह नज़र,
जैसे हटी ही नही हो माज़ी से कभी
नादान से चहरे जैसे किसी दूसरे के हों इनमें
जैसे किसी और की ज़िन्दगी के पलों का
बयान करती हैं ये ...
मुझ ही से अभी
तभी घड़ी की घंटी का आह्वान ।
मेरे जेहन को जगाने की कोशिश
तस्वीरों को वापिस अल्मारी में, क़ैद करने की चेतावनी
सपनों की दुनिया को फिर कहूँ
मैं अलविदा.....
किवाड़ पे कुंडी लगाते हुए
इस उम्मीद में कि
फिर से अलमारी खोलूंगी...
फिर कभी .... फिर से कभी....
खुलते ही खास दिनों की महक
मेरे जहां में ये बिखेरें
कितने रंगों से भरे
मेरे दिल में कई घर किये
एक एक करके हटाने दो
धूल की परतें हैं कई
धुंधली यादों की झलक मुझे लेने दो
उसके नीचे ग़हरी खुशी का एहसास
दबा सा, छुपा है बस यहीं
बरसों से सूखा पड़ा है फुरसत का
क्षितिज पे ध्यान लगाए मैं,
आँखें थोड़ी थक सी गयी हैं
ठहरने दो इन्हें अलमारी के साये तले
सामने जो ढेर रखा है उपेक्षित सा
टटोलने दो ...
जैसे नरम सी छांव इक मरुस्थल में
एक एक को निहारती मेरी यह नज़र,
जैसे हटी ही नही हो माज़ी से कभी
नादान से चहरे जैसे किसी दूसरे के हों इनमें
जैसे किसी और की ज़िन्दगी के पलों का
बयान करती हैं ये ...
मुझ ही से अभी
तभी घड़ी की घंटी का आह्वान ।
मेरे जेहन को जगाने की कोशिश
तस्वीरों को वापिस अल्मारी में, क़ैद करने की चेतावनी
सपनों की दुनिया को फिर कहूँ
मैं अलविदा.....
किवाड़ पे कुंडी लगाते हुए
इस उम्मीद में कि
फिर से अलमारी खोलूंगी...
फिर कभी .... फिर से कभी....
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