नाम दे दो धरती को पानी
भूरी होती ज़मीन मेरी
और सलेटी होता ये पानी
मैले दोनों हैं अब एकरंग एक परिभाषा
एक जैसे मिले हुए
बेहतर होनी की कम है आशा
आख़िर गुलाब की महक न भी हो
पर नाम का रूतबा सदा रहेगा
सबका घर होगा फिर पानी
धरा को मनुष्य पानी जब कहेगा
और पानी ही नही दिखेगा जब पानी में
मानुष शायद जागे गहरी निद्रा से
सूखे ताल और सूखी नहरें
सूखी धरती और सूखता पानी
बदल जाये तब भविष्य शायद
मानसिकता और रवानी
धरती के जैसे तो और भी कई ब्रह्माण्ड में
धरती को अलग करे सबसे पानी
भूरी होती ज़मीन मेरी
और सलेटी होता ये पानी
मैले दोनों हैं अब एकरंग एक परिभाषा
एक जैसे मिले हुए
बेहतर होनी की कम है आशा
आख़िर गुलाब की महक न भी हो
पर नाम का रूतबा सदा रहेगा
सबका घर होगा फिर पानी
धरा को मनुष्य पानी जब कहेगा
और पानी ही नही दिखेगा जब पानी में
मानुष शायद जागे गहरी निद्रा से
सूखे ताल और सूखी नहरें
सूखी धरती और सूखता पानी
बदल जाये तब भविष्य शायद
मानसिकता और रवानी
धरती के जैसे तो और भी कई ब्रह्माण्ड में
धरती को अलग करे सबसे पानी
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