वक़्त से पूछा मैंने इक बार
क्यों पहर हर पहर बदलते हो रंग
रखते हो तारीखों का हिसाब
कभी रात और कभी दिन का लिबास
तुम्हारे साथ हमेशा छोटी ही रहती है
क्यों मेरी मुलाक़ात
उसने कहा बिना रुके बिना थामे
बदलते रहते हैं चाहे रूप मेरे
तुम कभी सोचो कि साथ हूँ तुम्हारे
कभी बुरा कहकर नकार दो भले ही मुझे
जानता हूँ हक़ीक़त यही मैं
मेरा वजूद नही कोई बिना तुम्हारे
चाहे नाम दे दो मुझे बीता हुआ या
फिर पुकार लो कहके साल वो आने वाला
क्यों पहर हर पहर बदलते हो रंग
रखते हो तारीखों का हिसाब
कभी रात और कभी दिन का लिबास
तुम्हारे साथ हमेशा छोटी ही रहती है
क्यों मेरी मुलाक़ात
उसने कहा बिना रुके बिना थामे
बदलते रहते हैं चाहे रूप मेरे
तुम कभी सोचो कि साथ हूँ तुम्हारे
कभी बुरा कहकर नकार दो भले ही मुझे
जानता हूँ हक़ीक़त यही मैं
मेरा वजूद नही कोई बिना तुम्हारे
चाहे नाम दे दो मुझे बीता हुआ या
फिर पुकार लो कहके साल वो आने वाला
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