Friday, December 9, 2016

रुखसत किया जिस तूफ़ान को यह वादा लेकर..
कि दस्तक न देना कभी
मेरा किवाड़ है कमज़ोर कुण्डी भी है टूटी
बहुत बिखरे पढ़े है लम्हे मेरे कमरे में
अरसा लगेगा अलमारियों में समेटके रखने में इन्हें

आज सन्नाटा है शब्दो का
कलम पर भी जैसे ज़ंग सा लगा है
ख्यालों की तबीयत तरन्नुम की नहीं है
बस खामोशियों से पन्ना भरा हुआ है

आज फिर उसी तूफ़ान की चाह हूँ रखता
उन्ही लम्हो से बातें करने को हूँ तरसता।
ऐ बिछड़े सैलाब फिर रुखसार हो
मैंने अपनी किताब का दरवाज़ा है खोला



Transformed

A little drop, then a stream of droplets…
A little smile and then a laugh
A cocoon and then hundreds of colourful wings
Rainbows around me – splashing unexpectedly.

While I grope giving up hope
That single spark of faraway star
Gives the light to carry on finding
what I have been wishing so far

Happiness transformed…from a sprinkle to a deluge
I look for and sometimes find many…
reasons to experience another sun shine
Every day when the night onsets
Darkness not bothering me

Monday, August 17, 2015

बड़ी मुद्दत हुई तुझे याद किये हुए ,
तुझे भूलने की कोशिश से मुझे फुर्सत कहाँ
लोग कहते हैं मदहोश हूँ मैं एक ज़माने से,
तेरे तबस्सुम के दीदार के परे अब हसरत कहाँ

कह सकते हो इसे नशा या फिर इबादत,
साकी की महफ़िल की चाह या फिर खुदा के दर की तलब.…

पर मेरे तासूर में मत ढूंढ मेरी मुहब्बत का बयान,
ये तो हर  एक नफ़ज़ में मौज़ूद है
मत गुमराह हो गर मेरे लहज़े से बेखुदी ना टपके,
बड़ी मुद्दत हुई इज़हारे इश्क़ किये हुए....

Monday, April 27, 2015

मय  की आदत नहीं हमें ,
हमको तो है साकी की महफ़िल की चाह

कोई और कितने ही में डूबा दे चाहे,
बस उस एक के साथ में ही है सारा नशा!

Friday, February 27, 2015

रात हुई एक बार फिर,
और एक  बार फिर आप आये ख्वाबों में
सहर ने भी दरवाज़ा खटखटाया,
और पहली नज़र खुली आप ही के ख़यालों से.


दिन भर ताना-बाना  बुनती रही,
करती रही आप ही से उलझी-सुलझी बातें।
फिर शब के इंतज़ार में शाम आई,
आपके तबस्सुम की झलक छुपाये हुए.


ख्वाब जीती हूँ या फिर.…
हक़ीक़त का एहसास करती हूं।
मेरे वक़्त के हर पहर का ब्यान…
तेरी ही किसी कहानी से सुनाती  हूँ. 

Tuesday, December 16, 2014

आम सी कहानी,
रोज़मर्रा की ज़िन्दगी जैसे...
तुमको सुनाने वाली थी

जिक्र बस इधर-उधर की बातों  का होता
कुछ बार बार बुने,
और कुछ होठों तक ही रुके,
ऐसे फलसफातों का ही होता.

पर जब तुम आये मेरे दर पे,
आज भी हेर रोज़ की ही तरह.
हर ढलते दिन बाद,
 उन हज़ारों शाम की शुरुआत लिए.

फिर से  महफ़िल बन गयी बहुत खास,
फिर से कही मैंने हर बात तुम्हे,
लाखों में एक जज़्बात
बयां किया हो जैसे।

Tuesday, October 28, 2014

For Pihu on her 2nd Bday...

नन्ही सी उंगलियाँ , और वोह एक नन्ही सी परी ..
मुझे पकड़ती कभी, कभी छुड़ा के भागती हुई

ऑंखें मटकाते हुए किलकारियां  बिखेरे,
दौड़ के आएं और 'पापा पापा' चिल्लाये कभी  

नन्हे से कदम और वो उसकी नन्ही सी शरारतें,
पलंग के नीचे कभी.... कभी दीदी के पीछे छिपती हुई

"ममा  आ गई, ममा  आ गई" कहके गोद में उसका चढ़ जाना,
और फिर  इठला के अपनी फ्रॉक लहरा के दिखाना
रह रह  के मुझको याद कराना कि बेहतर है सब से वही
कितनी बातें कहती वो अपने नन्हें शब्दों से कभी....

 यही नन्हे  से  पल  हैं और वो उसकी नन्ही सी हँसी,
और इन्ही पलों से सजी "पीहू पीहू" करती अब ये  मेरी ज़िन्दगी