रात हुई एक बार फिर,
और एक बार फिर आप आये ख्वाबों में
सहर ने भी दरवाज़ा खटखटाया,
और पहली नज़र खुली आप ही के ख़यालों से.
दिन भर ताना-बाना बुनती रही,
करती रही आप ही से उलझी-सुलझी बातें।
फिर शब के इंतज़ार में शाम आई,
आपके तबस्सुम की झलक छुपाये हुए.
ख्वाब जीती हूँ या फिर.…
हक़ीक़त का एहसास करती हूं।
मेरे वक़्त के हर पहर का ब्यान…
तेरी ही किसी कहानी से सुनाती हूँ.
और एक बार फिर आप आये ख्वाबों में
सहर ने भी दरवाज़ा खटखटाया,
और पहली नज़र खुली आप ही के ख़यालों से.
दिन भर ताना-बाना बुनती रही,
करती रही आप ही से उलझी-सुलझी बातें।
फिर शब के इंतज़ार में शाम आई,
आपके तबस्सुम की झलक छुपाये हुए.
ख्वाब जीती हूँ या फिर.…
हक़ीक़त का एहसास करती हूं।
मेरे वक़्त के हर पहर का ब्यान…
तेरी ही किसी कहानी से सुनाती हूँ.
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