बड़ी मुद्दत हुई तुझे याद किये हुए ,
तुझे भूलने की कोशिश से मुझे फुर्सत कहाँ
लोग कहते हैं मदहोश हूँ मैं एक ज़माने से,
तेरे तबस्सुम के दीदार के परे अब हसरत कहाँ
कह सकते हो इसे नशा या फिर इबादत,
साकी की महफ़िल की चाह या फिर खुदा के दर की तलब.…
पर मेरे तासूर में मत ढूंढ मेरी मुहब्बत का बयान,
ये तो हर एक नफ़ज़ में मौज़ूद है
मत गुमराह हो गर मेरे लहज़े से बेखुदी ना टपके,
बड़ी मुद्दत हुई इज़हारे इश्क़ किये हुए....
तुझे भूलने की कोशिश से मुझे फुर्सत कहाँ
लोग कहते हैं मदहोश हूँ मैं एक ज़माने से,
तेरे तबस्सुम के दीदार के परे अब हसरत कहाँ
कह सकते हो इसे नशा या फिर इबादत,
साकी की महफ़िल की चाह या फिर खुदा के दर की तलब.…
पर मेरे तासूर में मत ढूंढ मेरी मुहब्बत का बयान,
ये तो हर एक नफ़ज़ में मौज़ूद है
मत गुमराह हो गर मेरे लहज़े से बेखुदी ना टपके,
बड़ी मुद्दत हुई इज़हारे इश्क़ किये हुए....
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