Saturday, February 22, 2020

Those dreams

Sometimes in my dreams I see you ..
Or only sometimes I remember
those dreams when I see you...


Those are the mornings..
that are rewarded
And those are the afternoons
that are treasured
Then those are the evenings
Those dreams are like a sheath of you
Those dreams when I had seen you
Those dreams where I remembered you


Finally those are the nights
When those dreams feel real
And in my sleep, I remember the days
Those days when I remembered the dreams
Those dreams when I had seen you



Sunday, February 16, 2020

O Romeo and Juliet

O Romeo and Juliet
Names of you
more than just your names
Like eternal love
in life's insipid veins
Like that greed
to be immortal
in thy lover's eyes
Like that insanity
Which never leaves
Even when love dies


O Romeo and Juliet
Stories of you
more than just words
Like gifts of wishes...
in the hollow cove of life
Divine as to be felt..
even for a tiny moment
A lifetime of treasure
that would be thine
Like psalms of faith
salvaging wavering minds


O Romeo and Juliet
Why were you two to be met
For naïve would have been love
And as explicable...
As rage, pleasure and regret
You made it felt....
like fire in a soul
like rage never known
like heart throbbing with ecstasy
like death's last moan..












Tuesday, February 11, 2020

raftaar

मैं चलाती ही रही साँसों का कारवाँ
ये ज़िन्दगी ले आई मुझे कहाँ
फलसफा शायद रह गया अधूरा
या फ़िर इसी को कहते हैं
चल हो गया सफर अब पूरा


बहुत लम्बी लिस्ट इच्छाओं की
जो अब भी मेरे मन को है कचोटती
वो जो खुशियाँ सदियों से हैं बटोरी
उनको बांटने को मैं हूँ तरसती


मेरी जेहन में ही हैं क़ैद
अभी तो लम्बे फ़लसफ़े
सोचा था बैठूंगी कागज़ कलम लिए
और बना दूँगी उनको लफ्ज़ सुनहरे


अभी तो बस लगा था थमी है
वक़्त की कुछ रफ़्तार
और मुठ्ठी में आयी है
जीवन की ये धार


मेरे आँगन के हर पौधे को
बताना था मेरा नाम
और सेहला के उनके पत्तों को
पूछना था हौले से मेरे लिए पैगाम


पडोस में झांककर
बनानी थी नयी दोस्तियाँ
फिर कहकहे गूंजती घंटो भर
और बीच में होती मधुर
चाय की चुस्कियाँ


कदमों को आज़ादी का
तोहफ़ा देना है बचा
आजतक तो बस तेज़
रफ़्तार की गिरफ्त में था कारवां


मग़र धागे बहुत उलझे से हैं अब
जैसे मज़बूत जाल एक अनंत
निकलेंगी इससे जो साँसे बदहवाज़
कौन जाने रहेगी तब उनमें कोई श्वास?


















Saturday, February 1, 2020

aisa kyun


ऐसा क्यों लगता है कि तुम होके भी नहीं हो
कि तुम्हारी हँसी तो गूंजती है कानों में मेरे
पर तुम्हारे दिल की मुस्कराहट
मुझसे दूर कहीं क्षितिज पे ठहरी हो






ऐसा क्यों लगता है कि हाथ थामे चल तो दिए 
पर एहसास नहीं होता मुझे होने का तेरे 
मेरे मन के कोने में एकांत सा है वातावरण 
और भीड़ में भी संग तुम्हारे हम अकेले 
ऐसा क्यों लगता है कि तुमसे कहके भी कुछ ना कहा 
लफ़ज़ कई तुम्हारे पर दर्ज़ हुए ना ज़ेहन में मेरे
जैसे घंटों किस्से बोले तुमने मुझसे
पर मेरे कानों में ख़ामोशी के आलम ही रहे


ऐसा क्यों लगता है कि तुम्हे आज भी ढूंढती हूँ
कि तुम्हारी ही आँखों में कहीं पा जाऊं तुम्हें
ऐसा क्यों लगता है जब भी साथ होती हूँ तुम्हारे
कि तुमसे ही माँगना चाहती हूँ मैं तुम्हे