Just Thoughts
Friday, January 5, 2018
याद कब की अलविदा कह गई
बीते लम्हो की धूप भी कोहरे में धुंधला गई
बैठता हूँ जब खुद से रुबरु
उस आइने में रोज़ फ़िर भी
साथ मेरे तुम ही दिखे
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