मेरे चलने की आहट क्या
अब भी आती है तुम्हें ?
मेरे आने की दस्तक सोचके
जैसे एक बार बेवजह ही द्वार
खोल दिया था तुमने
आज भी क्या धुंध में
ढूंढते हो मेरा एहसास ?
कल की सूनी राहों में
जैसे मेरे साथ होने की आस
और फिर जब बादल घिर आते हैं
हवा में नमी लिए,
क्या अब भी ख़यालों में होते हैं
मेरे कदम तुम्हारे कदमों
का साथ दिए
जब अटल सूरज
करता है उजली सहर
तुम्हारी ही परछाई में क्या
दिखती हूँ मैं तुम्हे हर डगर
बोल दो ना अब ,
कि आज भी मैं,
न केवल गहराई में हूँ
तुम्हारे दिल की बसी...
तुम्हारे जीवन की सारी लहरें
मुझी को लेके हैं बहती
अब भी आती है तुम्हें ?
मेरे आने की दस्तक सोचके
जैसे एक बार बेवजह ही द्वार
खोल दिया था तुमने
आज भी क्या धुंध में
ढूंढते हो मेरा एहसास ?
कल की सूनी राहों में
जैसे मेरे साथ होने की आस
और फिर जब बादल घिर आते हैं
हवा में नमी लिए,
क्या अब भी ख़यालों में होते हैं
मेरे कदम तुम्हारे कदमों
का साथ दिए
जब अटल सूरज
करता है उजली सहर
तुम्हारी ही परछाई में क्या
दिखती हूँ मैं तुम्हे हर डगर
बोल दो ना अब ,
कि आज भी मैं,
न केवल गहराई में हूँ
तुम्हारे दिल की बसी...
तुम्हारे जीवन की सारी लहरें
मुझी को लेके हैं बहती
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