दिल को फिर रख दिया ज़मीन पर
फिर से रौंदा किसी ने
अनजाने में या फिर जान बूझकर
कारवां है कि रुकता ही नहीं
ख़ुशी की गर्जन तो है मेरे आसमान में
पर बरसती है ग़म की ही लम्बी झड़ी
इतने ढकोसलो से है रूह कांपती
भ्रम है यह मेरे नासमझ मन का
या दुनिया है इन्ही से भरी पढ़ी
सालों से बुन रहा हूँ तुझे ज़िन्दगी
फिर भी टेढ़ी मेढ़ी है तेरी सिलें
मेरे हाथों में है कुछ कमी
या फिर ज़िन्दगी का है रूप यही
फिर से रौंदा किसी ने
अनजाने में या फिर जान बूझकर
कारवां है कि रुकता ही नहीं
ख़ुशी की गर्जन तो है मेरे आसमान में
पर बरसती है ग़म की ही लम्बी झड़ी
इतने ढकोसलो से है रूह कांपती
भ्रम है यह मेरे नासमझ मन का
या दुनिया है इन्ही से भरी पढ़ी
सालों से बुन रहा हूँ तुझे ज़िन्दगी
फिर भी टेढ़ी मेढ़ी है तेरी सिलें
मेरे हाथों में है कुछ कमी
या फिर ज़िन्दगी का है रूप यही
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