जमाना गुज़र गया ढूंढते हुए मंज़िल
तीर कितने ही चले
पर हसरतें हुई ना हासिल
दस्तूर बहुत याद दिलाते हैं दोस्त
चलाये जा बाण
निशाना लगेगा आखिर एक रोज़
पर आँखों में बहुत है निराशा के आँसूं
धुँधली दिखती है अब तो मयान भी
कैसे टटोलूँगा वो पड़ाव इतना दूर
क्यों ना यहीं पे कर लूँ मैं ठिकाना
सुकून और इत्मीनान का
फिर कोई और तीर चलाये दरबदर
मेरी मंज़िल वहीं जहाँ मेरा दस्तूर
तीर कितने ही चले
पर हसरतें हुई ना हासिल
दस्तूर बहुत याद दिलाते हैं दोस्त
चलाये जा बाण
निशाना लगेगा आखिर एक रोज़
पर आँखों में बहुत है निराशा के आँसूं
धुँधली दिखती है अब तो मयान भी
कैसे टटोलूँगा वो पड़ाव इतना दूर
क्यों ना यहीं पे कर लूँ मैं ठिकाना
सुकून और इत्मीनान का
फिर कोई और तीर चलाये दरबदर
मेरी मंज़िल वहीं जहाँ मेरा दस्तूर
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