सन्नाटा ख़ामोशी से मुझे लपेटे हुए
सुनता हूँ मैं अपने ही ख़यालों का शोर
हवा केँ झोंके ने भी मेरे दर का रूख ना किया
डर गया शायद राह के पत्थरों से
ऐसे ही उम्र दराज़ निकाली बिना गिला किये
अब कहता हूँ कुछ भी तो शिकायत-ए- अंदाज़ लगे
क्या दुनिया क्या इसके रोज़ के फ़लसफ़े
सन्नाटा फ़िर भी है ..
फ़िर भी बस मेरे ही ख़याल मुझसे बात कहें
सुनता हूँ मैं अपने ही ख़यालों का शोर
हवा केँ झोंके ने भी मेरे दर का रूख ना किया
डर गया शायद राह के पत्थरों से
ऐसे ही उम्र दराज़ निकाली बिना गिला किये
अब कहता हूँ कुछ भी तो शिकायत-ए- अंदाज़ लगे
क्या दुनिया क्या इसके रोज़ के फ़लसफ़े
सन्नाटा फ़िर भी है ..
फ़िर भी बस मेरे ही ख़याल मुझसे बात कहें
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