इन दिनों इंतज़ार की आदत नहीं मुझे,
अब जैसे वक़्त भागने सा लगा है.
तेरा दर कब का छूट गया मुझसे ,
भाग दौड़ अब दर-बदर की हो गई जैसे .
रंज ना कर साक़ी गर तेरा जाम ना भरूँ,
तेरी नाउम्मीद में पैमानों से रुख मोड़ लिया मैंने
रश्क़ होता है कभी उन गुज़रे लम्हों से,
अब हर पल जो गुज़रता है मामूली सा लगता है मुझे...
अब जैसे वक़्त भागने सा लगा है.
तेरा दर कब का छूट गया मुझसे ,
भाग दौड़ अब दर-बदर की हो गई जैसे .
रंज ना कर साक़ी गर तेरा जाम ना भरूँ,
तेरी नाउम्मीद में पैमानों से रुख मोड़ लिया मैंने
रश्क़ होता है कभी उन गुज़रे लम्हों से,
अब हर पल जो गुज़रता है मामूली सा लगता है मुझे...
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