ये वही पहर है रात का -
जब चाँद है खामोश कि ये उसकी चांदनी है
या कहीं सहर की रौशनी का है आलम
कि अभी रात है बाकी मेरे सोने की जुस्तजू में
या कहीं पहली बांग कि राह देखता है कोई...
अब इंतज़ार है मेरे वक़्त के आने का.
कुछ और पल के बाद ही सही,
पर रुका हूँ एक सही शुरुआत की आरजू में.
1 comment:
wah wah.. aati uttam..
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