एक दरवाज़ा खुला है
बरसों से बिना कोई आहट किये
उम्र भर की दास्तान कहने
या फिर इम्तिहां हर बार वो लिए
कभी इस ओर तो कभी चौखट के पार
मेरे कदम बस उस द्वार के ही आस पास
घड़ी हर घड़ी .....लगातार
ज़िन्दगी जैसे सिमट सी,
उलझ सी गयी हो इस असमंजस में
या फिर उस खुले किवाड़ के होने के उल्लास में
जैसे रात के बाद सुबह का इंतज़ार
और फिर ढलते सूरज की राह ताकती मैं बार बार
जैसे मुकाम हो सामने
और सारा जीवन टटोलते हुए जाए गुज़र
मंज़िल इस तरफ है कि
कदमों को पार करना होगा ये दर
बरसों से बिना कोई आहट किये
उम्र भर की दास्तान कहने
या फिर इम्तिहां हर बार वो लिए
कभी इस ओर तो कभी चौखट के पार
मेरे कदम बस उस द्वार के ही आस पास
घड़ी हर घड़ी .....लगातार
ज़िन्दगी जैसे सिमट सी,
उलझ सी गयी हो इस असमंजस में
या फिर उस खुले किवाड़ के होने के उल्लास में
जैसे रात के बाद सुबह का इंतज़ार
और फिर ढलते सूरज की राह ताकती मैं बार बार
जैसे मुकाम हो सामने
और सारा जीवन टटोलते हुए जाए गुज़र
मंज़िल इस तरफ है कि
कदमों को पार करना होगा ये दर