कुछ अरसा हुआ हाथ मिलाये हुए,
तेरी ज़िन्दगी में तो थे…
पर कुछ अरसा हुआ तेरे पास आये हुए
कुछ अरसा हुआ बातों के ताने-बाने बुने,
हाल तो रोज़ ही पता चला....
पर कुछ अरसा हुआ हाल सुनाये हुए
कुछ अरसा हुआ घंटों की गिलौरी से पेट भरे,
लम्हे तो इधर उधर हमने खूब चखे ..
पर कुछ अरसा हुआ वक़्त का स्वाद लिए ..
आज निकला हूँ दौड़ धूप से दूर ,
तो तेरा दर पेहला खटखटाया ..
चलो फिर से दोस्त मेरे साथ मेरे रास्तों पे ..
कुछ अरसा हुआ मुझे मंज़िल से भटके हुए